URDARPAN
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अक्षर तो मासूम हैं शब्दों में पनाह लेते हर जज्बे को सँवार देते। इन्हीं अक्षरों को बटोरती रही मैं और उजालों में सुर भरती रही। फ़िज़ाओं में गुनगुनाहट हुई तो हर जीव जंतु में दिव्यता नज़र आने लगी। मेरे ज़हन में कई तस्वीर उभरती गयी जो मेरी कल्पना का स्तोत्र बनीं। खुली नज़रों से ख्वाब देखते जो वो मेरे साथ जुडने लगे शायद ख्वाबों में ही। अक्षर चुनना और उन को बुनना मेरी आदत बन चुकी । कविता लिखना मेरा शौक नहीं मेरी इबादत बन चुकी ।

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